चैत के महीने में पहाड़ों में नए फूल और फल पकने शुरू हो जाते हैं। उन्ही में से एक खास फल है काफल।
गर्मियों की शुरुवात होते ही जहां हमे ठंडक भरे रसीले फलों की जरूरत होती है तो प्रकृति में इसका पूरा ख्याल रखा है, काफल के फल के रूप में। जहाँ शहरों में लोग रसीले तरबूज खरबूज खाते हैं तो पहाड़ों में हम खाते है काफल। रस से भरा हुआ, विटामिन से भरपूर और रसीला फल।
इसपर कई गाने बने है जैसे मशहूर गीत "बेड़ू पाको बारह मासा, काफल पाको चेत, मेरी छेला"
काफल के बारे में हम सभी ने एक कहानी जरूर सुनी होगी कि 2 पंछी बात करते हैं जब काफल पकते हैं। एक कहता है "काफल पाको, मैं नी चाखो" और उसके जवाब में दूसरा पंछी कहता है "पुर पुतई, पूर पूर"
तो क्या है इसके पीछे कहानी
कहते हैं एक गांव में एक विधवा औरत अपनी छोटी बेटी के साथ रहती थी। एक बार चेत महीने माँ जंगल से घास काटने गई और आते टाइम काफल फल तोड़ के भी ला गई। जिसे देख कर बेटी ने खाने को मांगा। तो माँ ने कहा कि पहले वो खेत जा रही है, काम खत्म कर के दोनों साथ में खाएंगे। बेटी मन मार के मां का कहना मान लेती है।
इतनी गर्मी में काम करके जब मां घर आती है तो देखती है कि टोकरी में काफल थोड़े काम हैं, तो गर्मी में थकी हारी मां को लगता है बेटी ने कहना नही माना होगा और खुद खा लिया।
और गुस्से में आ कर उसे थप्पड़ मार दिया जिस से वो गिर गई, चोट लगने और सुबह से भूखी होने के कारण बेटी मर गई। इस पर मां को बहुत बुरा लगता है, शाम तक ऐसे ही बैठी रहती है। तभी उस की नजर टोकरी में पड़ती है, काफल की टोकरी फिर भारी सी हो जाती है क्योंकि काफल धूप में सुख का सिकुड़ जाता है और शाम को ठंडक और नमी से फिर फूल जाते हैं। जिस से अपनी गलती का अहसास होने से वो भी भूख से तड़प तड़प कर मर जाती है।
और यही कहानी है कि वो दुबारा पंछी बनते हैं।
एक जो बेटी है वो करुण आवाज में कहती है "काफल पाको, मैं नी चाखो" यानी काफल पक गए हैं पर मैंने नही चखे हैं।
दूसरी जो मां है वो दुख में चीत्कार कर कहती है "पुर पुरई, पूर पूर" यानी पूरे हैं बेटी पूरे हैं।
इसी कहानी को गीत के माध्यम से दिखाया गया है एक वीडियो में, जिसको सुनकर और देख कर पूरी कहानी समझ आती है। और दिल को छू जाती है। एक बेहतरीन गीत एक बेहतरीन कहानी के साथ। उत्तराखंड के घर घर में सुनाई जाने वाली कहानी को एक खूबसूरत ढंग से दिखाया गया है। मैं तो बस खो गया इस गाने में। और आप।।
Youtube link of Full Song - Click Here
गाने को सुने और अपने बच्चो को आसान तरीके से समझाए अपने पहाड़ की एक महान कहानी जो एक अच्छा संदेश भी देती है कि कोई भी चीज अपनों से कीमती नही होती। अपने गुस्से को काबू रखें और किसी को भी कुछ भी बोलने से पहले या फिर कुछ भी करने से पहले 100 बार सोचे। पहले गुस्सा ठंडा होने दे। आराम से संभाले अपने रिश्तों को। भौतिक सुख के लिए अपनो की कुर्बानी न दे।
चीजें आज नही तो कल मिल ही जाएगी पर वो रिश्ते और वो लोग वो दोस्त फिर नही मिलेंगे। वो दरार फिर मुश्किल से भरेगी। तो दिमाग ठंडा रखे फिर कोई कदम उठाएं।
- बाबा बेरोजगार
गर्मियों की शुरुवात होते ही जहां हमे ठंडक भरे रसीले फलों की जरूरत होती है तो प्रकृति में इसका पूरा ख्याल रखा है, काफल के फल के रूप में। जहाँ शहरों में लोग रसीले तरबूज खरबूज खाते हैं तो पहाड़ों में हम खाते है काफल। रस से भरा हुआ, विटामिन से भरपूर और रसीला फल।
इसपर कई गाने बने है जैसे मशहूर गीत "बेड़ू पाको बारह मासा, काफल पाको चेत, मेरी छेला"
काफल के बारे में हम सभी ने एक कहानी जरूर सुनी होगी कि 2 पंछी बात करते हैं जब काफल पकते हैं। एक कहता है "काफल पाको, मैं नी चाखो" और उसके जवाब में दूसरा पंछी कहता है "पुर पुतई, पूर पूर"
तो क्या है इसके पीछे कहानी
कहते हैं एक गांव में एक विधवा औरत अपनी छोटी बेटी के साथ रहती थी। एक बार चेत महीने माँ जंगल से घास काटने गई और आते टाइम काफल फल तोड़ के भी ला गई। जिसे देख कर बेटी ने खाने को मांगा। तो माँ ने कहा कि पहले वो खेत जा रही है, काम खत्म कर के दोनों साथ में खाएंगे। बेटी मन मार के मां का कहना मान लेती है।
इतनी गर्मी में काम करके जब मां घर आती है तो देखती है कि टोकरी में काफल थोड़े काम हैं, तो गर्मी में थकी हारी मां को लगता है बेटी ने कहना नही माना होगा और खुद खा लिया।
और गुस्से में आ कर उसे थप्पड़ मार दिया जिस से वो गिर गई, चोट लगने और सुबह से भूखी होने के कारण बेटी मर गई। इस पर मां को बहुत बुरा लगता है, शाम तक ऐसे ही बैठी रहती है। तभी उस की नजर टोकरी में पड़ती है, काफल की टोकरी फिर भारी सी हो जाती है क्योंकि काफल धूप में सुख का सिकुड़ जाता है और शाम को ठंडक और नमी से फिर फूल जाते हैं। जिस से अपनी गलती का अहसास होने से वो भी भूख से तड़प तड़प कर मर जाती है।
और यही कहानी है कि वो दुबारा पंछी बनते हैं।
एक जो बेटी है वो करुण आवाज में कहती है "काफल पाको, मैं नी चाखो" यानी काफल पक गए हैं पर मैंने नही चखे हैं।
दूसरी जो मां है वो दुख में चीत्कार कर कहती है "पुर पुरई, पूर पूर" यानी पूरे हैं बेटी पूरे हैं।
इसी कहानी को गीत के माध्यम से दिखाया गया है एक वीडियो में, जिसको सुनकर और देख कर पूरी कहानी समझ आती है। और दिल को छू जाती है। एक बेहतरीन गीत एक बेहतरीन कहानी के साथ। उत्तराखंड के घर घर में सुनाई जाने वाली कहानी को एक खूबसूरत ढंग से दिखाया गया है। मैं तो बस खो गया इस गाने में। और आप।।
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गाने को सुने और अपने बच्चो को आसान तरीके से समझाए अपने पहाड़ की एक महान कहानी जो एक अच्छा संदेश भी देती है कि कोई भी चीज अपनों से कीमती नही होती। अपने गुस्से को काबू रखें और किसी को भी कुछ भी बोलने से पहले या फिर कुछ भी करने से पहले 100 बार सोचे। पहले गुस्सा ठंडा होने दे। आराम से संभाले अपने रिश्तों को। भौतिक सुख के लिए अपनो की कुर्बानी न दे।
चीजें आज नही तो कल मिल ही जाएगी पर वो रिश्ते और वो लोग वो दोस्त फिर नही मिलेंगे। वो दरार फिर मुश्किल से भरेगी। तो दिमाग ठंडा रखे फिर कोई कदम उठाएं।
- बाबा बेरोजगार
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