आज का दिन जब भी आता
है तो बस सिर्फ याद आता है तो बचपन में स्कूल का टाइम... जब हम सुबह सुबह उठ कर
स्कूल जाते थे और सब मिल कर स्वतंत्रता दिवस पर पूरे बाज़ार में झांकी निकालते
थे... और सभी लोग अपने अपने घरों की छत से हमे देखते थे...
सुबुह सब स्कूल में
जमा होते थे और उस के बाद झांकी निकलती थी फिर स्कूल आ के झंडा लहराया जाता था...
उस के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे... भाषण को तो जेसे तेसे झेल कर बस डांस
और नाटक का मजा लेते थे...
कई दिन पहले से ही दिल खुश हो जाता था कि उस दिन लड्डू मिलेंगे...
हाहाहा एक लड्डू के चक्कर में ये सब होता था... वेसे तो लड्डू दुकान से खरीद के भी
खा लेते पर पुरे बाजार में झांकी निकल कर, नारे लगा कर, हल्ला कर के, सब के पकाऊ
भाषण सुन कर जो मेहनत करते थे, उस के बाद फिर से लाइन में लग के एक लड्डू के लिए
लड़ना... और टीचर का हम को डांटना... उस का इनाम था ये लड्डू... एक लड्डू की कीमत
तुम क्या जानो टीचर बाबू... हाहाहा
जब झांकी ख़तम होने के बाद वापस स्कूल में आते थे और लाइन में बैठ
के सब के भाषण सुन ने पड़ते थे... और नजर बस लड्डुओं को ढूंडा करती थी जिस तरह एक
आशिक की नजर उस की माशूका को तलाशती रहती है...
उस से बड़ी बात ये की उस दिन पढाई नहीं होती थी हाहाहा.... छुट्टी...
पर दिमाग तब ख़राब होता था जब पता चलता था की इस दिन तो रविवार है... दिमाग ख़राब कि
सन्डे भी बर्बाद हुआ... काहे का स्वतंत्रता दिवस हमारी तो आजादी ही छीन जाती थी...
अंग्रेजो से ज्यादा तो टीचर अत्याचार करते थे हम पर...
पर अब वो दिन बहुत याद आते हैं जब हम स्कूल के बच्चों को झांकी
निकलते देखते हैं, दिल में फिर से उन के साथ जा के नारे लगाने का मन करता है... “आज
क्या है??? 15 अगस्त...” कोई नहीं यार अब उन को देख कर ही अच्छा लगता है, ये दिन
फिर नहीं आएंगे, कोई दुनिया की परवाह नहीं, कोई हो हल्ला नहीं, कोई फालतू दिखावा
नहीं, कोई दुश्मनी नहीं, बस दोस्ती और प्यार....
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बाबा बेरोजगार
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