हमने अक्सर बचपन में बहुत सी धार्मिक कहानियां सुनी और पढ़ी होंगी... उन्ही में से एक थी परशुराम की... वो महान योधा थे... और बहुत ही क्रोधी भी... उन्होंने भगवान् शिव जी की घोर तपस्या की थी.. जिस से प्रसन्न हो कर भगवान् ने उन्हें एक अस्त्र “परशु” दिया था... परशु मतलब कुल्हाड़ी... जिस कारण उन्हें परशुराम से जाना जाता है... ( परशु + राम = परशुराम )... भगवन परशुराम भगवान् विष्णु के छठे अवतार हैं...
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परशुराम सप्त ऋषियों में से एक ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे.... परशुराम अपने 5 भाइयों में सबसे छोटे थे... उनके पिता ऋषि भी बहुत क्रोधी थे... सभी एक आश्रम में रहते थे जहा उनकी माँ मिटटी के घड़े बनाया करती थी... हम सब से ये सुना या पढ़ा है की परशुराम ने अपनी माता का सर धड से काट कर अलग कर दिया था...
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हुआ ये था कि एक बार उनके पिता ऋषि जमदग्नि तपस्या कर रहे थे और उनकी माँ रेणुका पानी भर के आ रही थी तभी उनके हाथ से पानी का घड़ा गिर गया और पानी ऋषि जमदग्नि पर गिरा जिस से उनकी तपस्या भंग हो गई और उन्हें क्रोध आ गया, उन्होंने तुरंत अपने सबसे बड़े पुत्र को कुल्हाड़ी दे के कहा की अपनी माता का सर काट दो... पर उसने मना कर दिया... क्रोध में आ कर ऋषि ने उसे पत्थर का बना दिया... फिर ऋषि ने एक-एक कर के सभी पुत्रों से कहा पर सब ने मना कर दिया तो सब को पत्थर बना दिया... फिर ऋषि ने पुत्र परशुराम को बुलाया और आदेश दिया की अपनी माँ का सर धड़ से अलग कर दो... परशुराम ने वेसा ही किया... जिस से उनके पिता प्रसन्न हो गये और परशुराम से दो वरदान मागने को कहा... परशुराम ने कहा की उनकी माता को पुनः जीवित कर दें और इस घटना को भी भुला दे ताकि उन्हें याद न रहे कि उनके पुत्र ने उनकी सर काट दिया था... तथा दूसरा यह कि उनके सभी भाइयों को माफ़ कर के पहले जैसा कर दें... उनके पिता ऋषि जमदग्नि बड़े प्रतापी मुनि थे तो उन्होंने प्रसन्न हो कर परशुराम की इच्छा पूरी कर दी...
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परशुराम को ब्राह्मण छत्रिय भी कहा जाता है क्यों कि वो कुल से ब्राह्मण और गुण से छत्रिय थे... परशुराम युद्ध कला में माहिर थे उन्होंने पितामह भीष्म को भी ये कला सिखाई थी... साथ ही उन्होंने द्रोणाचार्य और कर्ण को भी युद्ध कला सिखाई थी...
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उनके आश्रम में कामधेनु गाय भी थी.... जो सभी मनो कामना पूर्ण करती थी... एक बार ऋषि अपने आश्रम से किसी कार्य से बाहर गये हुए थे उसी दौरान वहाँ कुछ छत्रिय आ गये उन्होंने माता रेणुका से भोजन का आग्रह किया... इसलिए माँ रेणुका ने कामधेनु से कहा और उन सब के भोजन की व्यवस्था की... ये सब देख कर छत्रियो ने उन से उस चमत्कारी गाय कामधेनु को अपने राजा कर्ताविर्या सहस्त्रार्जुन के लिए खरीदने का प्रस्ताव रखा परन्तु आश्रम के साधुओं ने नकार दिया.. तो वे जबरदस्ती गाय ले जाने लगे तो परशुराम ने सब को मार डाला.. इस से क्रोधित हो कर राजा के पुत्र ने उनके पिता ऋषि जमदग्नि को मार डाला.... जब परशुराम ने अपने पिता को मृत पाया तो क्रोध में आ कर उन्होंने राजा के सारे पुत्रो को मार डाला...
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परशुराम अपने क्रोध के लिए जग प्रसिद्ध हैं... एक बार जब परशुराम शिव के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत आये तो भगवन गणेश ने उनका रास्ता रोक दिया था... जिस से क्रोध में आकर उन्होंने गणेश के साथ युद्ध किया और अपने परशु के वार से गणेश जी का एक दांत भी काट दिया था तभी से गणेश जी का एक दांत टुटा हुआ है... और उन्हें “एक दन्त” से जाना जाता है...
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रामायण में परशुराम ने ही सीता के पिता राजा जनक को शिव जी का धनुष दिया था जो सीता के स्वयंवर में रखा गया था.. जिसे फिर श्री राम चन्द्र जी ने तोडा था.. जिस से परशुराम बहुत क्रोधित हुए थे पर बाद में सीता के कहने पर मान गये थे...
कहते हैं परशुराम हिन्दू धर्म के अनुसार 7 अमर लोगो में से एक हैं यानी चिरंजीवी हैं और वो भगवन विष्णु के दंसवे अवतार “कल्कि” को भी युद्ध की शिक्षा देंगे....
तो दोस्तों आते रहो यहाँ के भी चक्कर लगाते रहो... बाबा जी इन्टरनेट की किताब से कुछ न कुछ ढूंड के यहाँ पोस्ट भेजते रहेंगे...
- बाबा बेरोजगार
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