वैसे मैं घर के किसी काम को लेकर बहुत आलसी हूँ
पर कही अचानक कोई दोस्त बुला ले घुमने या फिर किसी और काम से तो पता नहीं कहा से
ताकत आ जाती है... इसी बात पर रोज घर में गाली खाता हूँ... मुझे लगता है कि ये बस
मेरी ही समस्या नहीं है बल्कि लगभग सभी युवा वर्ग की है...
बात आज कल ही है यानि की मार्च
ख़तम होने को था और अप्रैल शुरू होने को... मेरे मम्मी पापा को गाँव जाना था किसी
काम से.... सब पहले से तय था तो मैंने भी अपने दोस्त के साथ कही छुप के से घुमने
का प्लान बना डाला... ऐसा नहीं है कि मेरे घर में बहुत पाबन्दी है पर फिर भी बिना
किसी जरुरी काम के घर वाले कही जाने से पहले बहुत सवाल पूछते हैं तो वैसे ही जाने
का मन नहीं होता... मेरा दोस्त बहुत दिनों से कह रहा था कि उसे नैनीताल के बैंक
में कुछ काम हैं... तो फिर क्या था प्लान बन गया हल्द्वानी से नैनीताल का....
जैसे ही मम्मी पापा गाँव को
निकले, मैं अपने दोस्त के रूम पे पहुँच गया... और अगले दिन नैनीताल जाने का
प्लान बना डाला.... तो प्लान ये था की मैं अपनी स्कूटी ले के आऊंगा और वो उसमे 100
rs का पेट्रोल डलवाएगा.... मैंने अपनी स्कूटी कभी लम्बे रूट पर नहीं चलाई थी इसलिए
थोडा डर भी था की चला लूँगा या नहीं पूरा पहाड़ी रास्ता है, घुमावदार रास्ते, दोनों
नए नए ड्राईवर... हाहाहा
और दूसरी बात कि नहीं पता था कि
चढ़ाई में गाडी कितने का तेल खाएगी... फिर सोचा देख लेंगे, वैसे तो इतने के पेट्रोल
में पहुँच ही जाएगी और वापसी में तो पूरा ढलान है तो गाडी न्यूटल में आ जाएगी तो
पेट्रोल की कोई झंझट नहीं.... तो फिर कल का प्लान बन गया.... घर आ के छोटे भाई कोई
भी बताया कि इस शैतानी दिमाग में क्या चल रहा है.... उस ने मुझे थोड़ी देर घूरा और
कहा चला लेगा ना... पहली बार लॉन्ग रूट पे जरा है एक बार और सोच ले.... तो मैंने
कह दिया जायेंगे तभी तो सीखेंगे.... तू बस घर से फ़ोन आये तो कोई न कोई बहाना बना
के बचा लेना... मैं टाइम पे वापस आ जाऊंगा... उसने कहा ठीक है पर टाइम टाइम पे कॉल
कर के बताते रहना कहा पहुंचा.... बस बात बन गई... अब तो बस सुबह का इंतज़ार था... दोस्त को रात को ही कॉल कर के कह दिया की सुबह जल्दी चलेंगे.... नास्ता वही रस्ते में
करेंगे.... वो भी मान गया...
फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठ के
तैयार हो गया और उसके रूम पे स्कूटी ले कर आगया... वो भी तैयार था तो फटाफट निकल
लिए नैनीताल को.... रास्ते में पेट्रोल पंप पर 100 rs का तेल भरवाया... फिर दोस्त जिद करने लगा कि वो स्कूटी चलाएगा... मैंने मना किया तो कहने लगा आधा सफ़र मैं
चलाऊंगा आधा तू... वो भी अब सिख गया था ढंग से तो मैंने डर डर के दे ही दिया...
फिर हम चल दिए मैंने भी आँखे खुली रखी थी... मैं भी बता रहा था कहा पर ब्रेक मार, कहा
पर हॉर्न, कहा पर तेज चला.... कुछ मिला के हँसते गाते हम जा रहे थे... हल्द्वानी
से 8-10 km दूर ही एक जगह पड़ती है दोगांव.... ये जगह चाय – नास्ते के लिए फेमस
है... सभी बसें और छोटी गाड़ियाँ भी यही रूक कर नास्ता करती हैं.... यहाँ पर
प्राकृतिक स्रोत भी हैं जिस से शुद्ध पिने का पानी लगातार बहता रहता है... पहाड़ो
की ये ही मस्त बात है... शुद्ध प्राकृतिक पानी... बोतलों में मिलने वाले महंगे
पानी से भी मस्त, ताज़ा और बहुत ही लाभदायक...
वैसे मुझे कभी कभी लगता है कि
मैदानी शहरों से आने वाले टूरिस्ट लोग इस पानी को पीने के कतरातें हैं... वैसे ये
वाजिब भी है पर डरने की कोई बात नहीं ये पानी पहाड़ो से छन के पूरी तरह फिल्टर हो
के आता है तो साफ़ होता है...
दोगांव में रुक के हमने नास्ता किया... चाय पकोड़े और आलू रायता... ओ हो मजा आ गया पर बिल देख के सब पच गया... हाहाहाहा फिर फोटो शोतो खिंच के निकल लिए आगे को... मैंने कहा की अब मैं चलाता हूँ तो वो कहने लगा की बस थोड़ी देर और चलाने दे मज्जा आ रहा है... 5-6 km दूर जयोलीकोट आ जायेगा.... वहा से तू चलाना... फिर मैं मान गया... जयोलीकोट लगभग आधे रस्ते में पड़ता है... यानि नैनीताल अब आधा सफ़र ही है... फिर जयोलीकोट पहुँच कर मैंने स्कूटी का कार्यभार दोस्त से संभाल लिया J बड़ा मज्जा आता है यार पहाड़ो में गाडी चलने में.. बस एक बात का ध्यान रखना है कि आराम से चलाओ, कोई जल्दी नहीं दिखाओ और हमेशा आँखे खुली रखो क्यूंकि मोड़ो पर अक्सर सामने से गाडी आने पर हडबडाहट हो जाती है... आराम से चलाओ और नजरो का मजा लो.... मस्त मस्त मोसम का... जंगलो का, पेड़ो का, पहाड़ो का.....
मुझे सुरु में चलने में थोडा डर लग
रहा था मोड़ो पर कुछ जयादा ही लम्बा कट मार रहा था... जिस वजह से दोस्त डर रहा था और
कह रहा था की आराम से चला इतना लम्बा कट मारेगा तो सामने से कोई गाडी टक्कर मार
देगी... बात में दम था... फिर आगे से हर मोड़ पे थोड़ी सी स्पीड कम कर देरा था और
अपने साइड में आराम से कोने से कट मर रहा था जिस से और गाड़ियों को भी फुल जगह मिल
जा रही थी... फिर हम मोसम का मजा लेते हुए पहाड़ो को देखते हुए आराम से जाने लगे...
कही कोई जगह अच्छी लगती हो गाडी रोक के फोटो में लग जाते... अपनी गाडी का यही
फायदा होता है की कही भी अपने मन से रुक रुक के जा सकते हैं...
नैनीताल पहुच कर सबसे पहले हमने
उस के बैंक का काम निपटाया फिर माँ नैना देवी मंदिर में दर्शन के लिए गये... वहाँ
पूजा कर के प्रसाद ले के थोडा घुमे...
फिर नैनीताल झील के किनारे घुमे... फोटो
खिंचाई.... फिर माल रोड में घुमे.... माल रोड घुमने का असली मज्जा तो शाम को अधेरा
होने पे ही आता है... जब पूरा नैनीताल मस्त लाइट में एक दम जन्नत लगता है....
pc - google
मैं नैनीताल 2 साल रहा हूँ और
मल्लीताल के ऊपर पहाड़ पे बने गावं में रहता था...
उसके दो फायदे थे एक तो ये कि वहां रूम सस्ते में मिल जाता था और दूसरा ये कि
वहाँ से पूरा नैनीताल दिखता था.... बहुत ही प्यारा, शांत, चमकीला और मनभावक...
नैनीताल का असली मजा लेना है तो वह कम से कम एक रात तो रुकना ही चाहिए.... माल रोड
तो इसे सजी रहती है जेसे दिवाली हो... हर चीज़ वहा मिल जाती है शौपिंग के दीवानों
के लिए...
पर हम तो गरीब लोग बस दुकानों को
बाहर से देख के ही मस्त हो जाया करते थे.... जब हम माल रोड से गुजर रहे थे तो
मैंने दोस्त से कहा कि ये बहुत बड़ी बात है यार हम लोगो के लिए कि हम माल रोड में
अपनी गाडी में घूम रहे हैं... चाहे स्कूटी ही सही... J
फिर तल्ली ताल में आ कर एक चिप्स
का पैकेट लिया और फिर न्यूटल में वापस आने लग गये... कोई पेट्रोल की जरूरत नहीं पर
हा कभी कभी स्टार्ट करने की जरूरत पड़ जाती है क्यूंकि थोड़ी बहुत चढाई आ जाती है रास्ते
मैं.... वेसे थोडा बहुत तेल बचा था स्कूटी में इसलिए नो टेंशन....
नैनीताल से थोडा नीचे ही हनुमान
गड़ी पड़ता है... जहा हनुमान जी का मंदिर है... और मंगल वार को तो शाम को खीर भी
मिलती है प्रसाद में.... आहा मस्त होती है यार खीर...
फिर मंदिर से आ के हम चल दिए वापस
हल्द्वानी को... रस्ते में आराम से घूमते हुए हल्द्वानी आ ही गये... बहुत मजा आया
इस टूर का.... पहाड़ो में सफ़र इतना डरावना भी नहीं होता बस आराम से गाडी चलाओ तो
बहुत मज्जा आता है...
बाकी तो आप लोग खुद ही जा के देख
आओ की कैसा है नैनीताल.... मजा आ जायेगा...
- बाबा बेरोजगार
No comments:
Post a Comment