अभी हुए एक विवाद ने उत्तराखंड के लोग को दो हिस्सों और विचारों में बाँट दिया है.... जहाँ महिला ने गुस्से में अपशब्द कह दिए और गुस्से में मुख्यमंत्री जी उन्हें ससपेंड करने का आदेश दे दिया... तो गलती किस की है और कितनी???
फिर बात बढ़ी, हल्ला हुआ और मुख्यमंत्री जी भी गुस्से में आ गये और उन्होंने उनको बाहर करने को कह दिया जिस के बाद महिला का गुस्सा और ज्यादा हो गया और वो भी भूल गई की वो कहाँ और किसके सामने हैं, और बुरा भला कहने लगी... जिसके बाद उन्हें ससपेंड करने का आदेश दिया गया...
- बाबा बेरोजगार
बात है देहरादून में मुख्यमंत्री के जनता दरबार की... जब वहां उत्तरकाशी जिले के नौगाँव प्राथमिक विद्यालय में टीचर उत्तरा बहुगुणा पन्त मुख्यमंत्री जी से अपना तबादला देहरादून में करवाने के लिए विनती की... कहा कि वो 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में सेवा दे रही हैं और अब उनका तबादला (ट्रान्सफर) देहरादून में कर दिया जाये... उनकी पति की मृत्यु के बाद बच्चों की देखभाल और जॉब में परेशानी हो रही है... और जॉब छोड़ भी नहीं सकती...
इस बात पर मुख्यमंत्री ने सवाल किया कि क्या आपने जॉब में जोइनिंग करते समय लिख कर दिया था???
शायद मुख्यमंत्री जी अध्यापिका की मज़बूरी को समझ न सके और न ही अध्यापिका मुख्यमंत्री जी के सीधे सवाल को सिर्फ एक सवाल समझ सकी और इस सवाल को दिल पर ले कर उनके अन्दर का दर्द बाहर आ गया और उन्होंने गुस्से में मुख्यमंत्री जी को ऊँची आवाज में बुरा भला कह दिया...
अब यहाँ देखा जाये तो गलती दोनों की है और दोनों की गलती नहीं भी है... सब माहोल और समय की बात है... जहा मुख्यमंत्री जी ने सब कुछ एक सामान्य सवाल की तरह लिया वही महिला ने इसे अपने ऊपर एक कटाक्ष के रूप में लिया...
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फिर बात बढ़ी, हल्ला हुआ और मुख्यमंत्री जी भी गुस्से में आ गये और उन्होंने उनको बाहर करने को कह दिया जिस के बाद महिला का गुस्सा और ज्यादा हो गया और वो भी भूल गई की वो कहाँ और किसके सामने हैं, और बुरा भला कहने लगी... जिसके बाद उन्हें ससपेंड करने का आदेश दिया गया...
अब एक बार सब कुछ फिर से देखा जाये तो गलती मुख्यमंत्री जी की यह है की उन्हें मामले को शांति से निपटाना चाहिए था, चाहे सामने वाले का व्यवहार कैसा भी उन्हें अपने गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए था...
अब महिला की बात करें तो गलती उनकी भी है... अगर वो अपना तबादला चाहती भी थी और उसकी अर्जी CM को दे भी दी तो उसमे थोडा टाइम लगना था... उसी समय कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता... उन्हें अपने पर थोडा कण्ट्रोल रखना चाहिए था... उन्हें दुःख था पर अगर सही ढंग से बात रख कर थोडा रुक जाती तो सायद उनकी बात को सही ढंग से सोच कर उस पर काम किया जाता...
वो एक टीचर है, उन्हें पता होना चाहिए की एक टीचर का व्यवहार हर बच्चा और उसके माँ बाप के लिए बहुत जरुरी होता है... अपने दुःख को अपने पर इस कदर हावी नहीं होने देना चाहिए की आप भूल जाये की आप अपने से सीनियर से बात कर रही है, पूरी दुनिया के सामने बात कर रही है...
खेर मैं किसी को सही या गलत नहीं कहता... क्यूंकि दोनों अपनी जगह सही हैं पर गम और गुस्से में दोनों ही गलत भी हैं... बाकि हम किसी के बारें में क्या सोचते हैं इस से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता... हम सब बस अपनी बात रख सकते हैं...
बस अब यही कहना चाहूँगा की दोनों अपनी कटु वाणी के लिए एक दुसरे से माफ़ी मांगे और हम सब से भी... क्यूंकि दोनों ही एक ऊँचे और गरिमामय पद पर है... क्यूंकि जहाँ मुख्यमंत्री राज्य को सँभालते हैं तो वही टीचर पूरे स्कूल के बच्चो को सँभालते हैं... जो हम सब के लिए मायने रखता है... और मुख्यमंत्री जो को तबादले की अर्जी पर फिर से सोचना चाहिए...
ट्रान्सफर नियम में जरुरी बदलाव होना चाहिए... दुर्गम से सुगम और सुगम से दुर्गम तबादले के लिए फिर से सोचना चाहिए...
आप को क्या लगता है... अपना विचार ठन्डे दिमाग से सोच कर दे...
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