कहते हैं कि कुछ सही हो न हो पडोसी सही होना चाहिए... पर अपनी तो किस्मत ही फूटी है... ऐसा पडोसी मिला है कि इस से अच्छा तो अकेले रह लेते...
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शहरों में रहने के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी... फायदे कि बातें तो हर कोई करता होगा... पर नुकशान की बात मैं ही कर लेता हूँ... सब से बड़ा नुकसान तो है बेकार मोहल्ला या फिर बेकार पडोसी...
एक अच्छा पडोसी 100 दोस्तों से भी ज्यादा अच्छा होता है क्यूंकि कोई भी प्रॉब्लम हो तो सबसे पहले वो ही मदद के लिए आता है... हर सुख दुःख में साथ होता है... सारी अच्छाई और बुराई जानता है... समझाता है... सिखाता है... जब हम गैरसैण (चमोली) में रहते थे तो बहुत ही अच्छा मोहल्ला था... मुझे कभी नहीं लगा कि मैं अपने गाव में नहीं हूँ... मुझे अपने गाव जैसे ही लगता था... सब खूब मिल के सारे त्यौहार मानते थे... सुख दुःख एक परिवार की तरह बिना किसी झिझक के एक दुसरे से बांटते थे... पर................
पर आया है तो समझ लो बाबा कि जिन्दगी की वाट लग गई... अगर बुरा पडोसी गले पड़ जाये तो... फिर हम यहाँ हल्द्वानी (नैनीताल) आ गये... बिलकुल नया था मेरे लिए... शहरों में तो बहुत घुमा था... पर रहना बहुत मुश्किल लगा... ऊपर से वो मोहल्ला वो पडोसी फिर नहीं मिले... जो मिले वो ऐसे मिले कि पुराने पड़ोसियों की कुछ ज्यादा ही याद आने लगी...
कसम से ऐसे पडोसी मिले हैं न मुझे कि बता भी नहीं सकता... पर अब लिखने बैठा हूँ तो बताना तो पड़ेगा ही बाबा... :/
मोहल्ला तो ठीक ठाक है, कुछ अच्छे तो कुछ बुरे... पर जो सबसे करीबी पडोसी गले पड़ा है उसको अब क्या कहू... पता नहीं क्या चीज़ है यार वो... छोटी से छोटी चीज़ें भी बाहर आ के ऐसे चिल्ला के सुनाता है जैसे हम ने कभी कोई चीज़ें देखी ही नहीं...
हर टाइम सुनाता रहता है... आज ये किया आज ये किया... कभी कभी तो मुझे उस पर तरस भी आता है और उस से ज्यादा तो उसके बच्चों पर आता है... पर लगता है उसके बच्चे उससे भी बड़े वाले हैं... नहीं तो वो खुद उसे समझाते कि क्या सही है और क्या गलत... पर उस कि किस्मत....
और हमारी भी जो ऐसे लोग मिल गये... अब तो बस यही दुआ है ऊपर वाले से कि हे प्रभु एक अच्छी सरकारी जॉब लगा दे... और मैं अपने परिवार के साथ वहाँ चला जाऊ... और इस बला से छुटकारा मिले... जय हो...
- बाबा बेरोजगार
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