आज कल कुछ कागजी काम की वजह से अपने गाँव पिथोरागढ़ गया हुआ था... वहां तहसील में काम था, तो जब तहसील पहुंचा जो कि पिथोरागढ़ के सिमलगैर बाजार के बगल में ही रामलीला ग्राउंड के ऊपर एक पुराने बिल्डिंग में हैं तो वहाँ सन्नाटा पसरा हुआ था... पूछने पर पता चला कि अब तहसील यहाँ से हटा कर नीचे मजिस्ट्रेट के बगल में शिफ्ट कर दी गई है... सब काम वहीँ होता है...
मैंने पूछा कि यहाँ क्या कमी थी??? जो उतनी दूर भेज दिया... सब कुछ तो उन्होंने कहा कि पुराना तहसील जिस किले में चल रहा था ये बहुत पुराना है... और पुरातत्व विभाग वालों ने इसे राज्य धरोहर के रूप में संभालने का फैसला लिया है... जिस कारण अब इस किले का पुनर्निर्माण होगा और इसे जनता के लिए एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पर्यटन के लिहाज से खोला जायेगा...
ये बात तो सही लगी पर इस चक्कर में जो अब तहसील 2-3 km नीचे शिफ्ट कर दिया उससे लोगों को बहुत ही परेशानी हो रही है... क्यूंकि पैदल जाने पर वो बहुत दूर हुआ और दूसरा वहां जाने के लिए गाडी भी नहीं मिलती... जिसके पास अपनी गाडी हो उसका ही सही है पर बाकि लोगों के लिए सर दर्द ही हुआ...
किसी काम के चक्कर में निचे जाओ तो वहाँ लंच ब्रेक हो जाता है और दुबारा वापिस आओ तो शाम हो जाती है... बस हो गया इसे तो काम फटाफट...
खैर आम जनता और परेशानियों का तो अटूट रिश्ता है इसलिए कोई बात नहीं... जनता सब समझती है, उसे धीरे – धीरे इसकी आदत पड़ जाएगी...
तो अब Main मुद्दे पर आते हैं कि ये किला बहुत पुराना 1800 के समय का है, जिसे गोरखा राजाओं ने अपने शासन काल में दुश्मन से बचाव और अपने आराम के लिए बनाया था... जिसे बाद में 1881 में तहसील के कार्य और कार्यालय के रूप में बदल दिया गया...
किला छोटा है पर बहुत ही शांत, ठंडा और पिथोरागढ़ के पूरे सोंदर्य को दिखता है... यहाँ पर बहुत पुराने और बड़े छायादार पेड़ हैं जिस से गर्मियों में भी बड़ी प्यारी ठंडी छाया मिलती है...
पहले तहसील में काम करने आये लोगों को यहाँ पर आराम करने और थोडा सुस्ताने को मिलता था... पर अब तहसील को टकाना स्थित मजिस्ट्रेट ऑफिस के बगल में भेज दिया... जहाँ ना तो कोई आराम करने की जगह है और न ऐसी छाया...
किले की बात करे तो इसमे किले की रक्षा और दुश्मनों पर बंदूकों से हमला करने के लिए किले की दीवारों पर करीब 150 छेद हैं... जहाँ से बन्दूक डाल कर हमला किया जाता था...
अब देखते हैं पुरातत्व विभाग और पर्यटन विभाग इसको किस नए रूप और अंदाज़ में आम जनता के लिए खोलता है.... क्या इससे हमे इतिहास की याद ताजा होगी या फिर सिर्फ पुरानी तहसील की यादें...
- बाबा बेरोजगार
No comments:
Post a Comment