हम हमेशा सुनते हैं कि स्त्री शक्ति का रूप होती है... तो बस यही सोचते हैं कि शक्ति, माँ दुर्गा का रूप है इसलिए स्त्रियों को शक्ति कहते होंगे... पर आज माँ को रोज की तरह बिना आराम किये काम करते देखा तो पता चला कि आखिर क्यूँ शक्ति कहते हैं???
हम सब से अपनी-अपनी माँ को दिन भर बिना थके काम करते देखा है... इसलिए उस की फ़िक्र पूछने की जरूरत नहीं समझते बस ये सोच कर कि माँ तो रोज ही काम करती है... कोई बात नहीं...
पर बाबा माँ को भी थकान होती है... कभी एक बार माँ के हाथ पैर या फिर सर दबा के देखना... पहले मना जरूर करेगी... पर कुछ देर जबरदस्ती सेवा कर के देखना उन के चेहरे पर कितना आराम नजर आता है... माँ बताती नहीं पर वो कोई मशीन नहीं है... थोड़ी बहुत मदद तो हम भी कर सकते हैं...
बचपन से ही हमने अपनी माँ को काम करते देखा है... अपनी बहनों को भी घर के छोटे बड़े काम करते देखा है... चाहे बहनें छोटी हों या फिर बड़ी... घर के काम में हाथ जरूर बाटती हैं... गाँव में लड़कियां छोटी उम्र से ही खेतों के काम में हाथ बाटती हैं, जंगले से घास लाती हैं, खाना बनाना, झाड़ू पोछा... और शहरों में भी लड़कियां छोटी उम्र से ही माँ के साथ घर के कामों में लग जाती है... चाहे खाना बनाना हो या फिर झाड़ू पोछा...
कुल मिला कर कहने का मतलब ये है कि लड़की चाहे बेटी के रूप में हो, बहन के रूप में हो, बीबी के रूप में हो या फिर माँ के रूप में... वो बिना किसी बड़ी शिकायत के या फिर ज्यादा नखरे के सब काम करती है... गावं में मेरी नानी इस उम्र में भी सब के लिए खुद खाना बनाती है... चाहे कितनी परेशानी क्यों न हो सुबह उठने में फिर भी सबसे पहले उठ कर सब के लिए चाय नास्ता बनाती है... बस इन के लिए दिल में इज्जत के साथ सलाम... इसलिए स्त्री को शक्ति कहते हैं... ऐसे ही किसी ने बस दिल रखने के लिए नहीं कह दिया था कि “स्त्री शक्ति का रूप होती है...”
कहने को और भी बहुत कुछ है पर आज के लिए इतना ही... मैं जरा आटा गूंथ लू बाबा... माँ की मदद भी हो जाएगी और बाबा बरोजगार का थोडा टाइम भी कट जायेगा... जय हो...
- बाबा बेरोजगार
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