चिपको आंदोलन को आगे बढ़ा कर जंगलो को कटान से बचाने के लिए आगे आई गौरा देवी को चिपको वुमन के नाम से जाना जाता है।
Google ने अपने Doodle के द्वारा इन्हें सम्मानित किया।
गौरा देवी (1925- 1991) - जंगलो को काटने से बचाने के लिए किए गए "चिपको आंदोलन" (1973) में अहम भूमिका निभाकर प्रसिद्ध हुई।
चमोली के लाता गांव में सामान्य परिवार में जन्मी। जब जंगल काटने के लिए लोग आए तो गोरा देवी के नेतृत्व में गाव की सभी महिलाओं ने हिम्मत कर एक एक पेड़ को पकड़ के घेर लिया, और कहा कि पेड़ काटने से पहले उन्हें काटो। इस बहादुरी को देख सभी हैरान थे। इसी हिम्मत की वजह से पहाड़ की जान इन जंगलो को बचाया गया।
चिपको आंदोलन का घोषवाक्य -
क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार।
Important -
चिपको वुमन - गौरा देवी
सुंदरलाल बहुगुणा जी को पद्म विभूषण दिया गया - 2009 में
सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने उत्तराखंड में पर्यावरण सरंक्षण आंदोलन को बड़ा रूप दिया। इस आंदोलन को 1987 में "सम्यक जीविका पुरस्कार (Right Livelyhood Award) से सम्मानित किया गया।
- बाबा बेरोजगार
credit - wikipedia |
गौरा देवी उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिला है जिनको हर कोई उनके पेड़ों के संरक्षण के लिए किए गए कार्यों के लिए जानता है। इन्होंने पेड़ों को काटने से बचाने के लिए पेड़ो को पकड़ लिया था और जब पेड़ काटने वाले आये तो कहा था कि पहले हमें काटो फिर पेड़ों को। इस आंदोलन को चिपको आंदोलन का नाम दिया गया ।
Google ने अपने Doodle के द्वारा इन्हें सम्मानित किया।
गौरा देवी (1925- 1991) - जंगलो को काटने से बचाने के लिए किए गए "चिपको आंदोलन" (1973) में अहम भूमिका निभाकर प्रसिद्ध हुई।
चमोली के लाता गांव में सामान्य परिवार में जन्मी। जब जंगल काटने के लिए लोग आए तो गोरा देवी के नेतृत्व में गाव की सभी महिलाओं ने हिम्मत कर एक एक पेड़ को पकड़ के घेर लिया, और कहा कि पेड़ काटने से पहले उन्हें काटो। इस बहादुरी को देख सभी हैरान थे। इसी हिम्मत की वजह से पहाड़ की जान इन जंगलो को बचाया गया।
चिपको आंदोलन का घोषवाक्य -
क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार।
Important -
चिपको वुमन - गौरा देवी
सुंदरलाल बहुगुणा जी को पद्म विभूषण दिया गया - 2009 में
चंडी प्रसाद बहुगुणा जी को रेमैन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया - 1982 में
सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने उत्तराखंड में पर्यावरण सरंक्षण आंदोलन को बड़ा रूप दिया। इस आंदोलन को 1987 में "सम्यक जीविका पुरस्कार (Right Livelyhood Award) से सम्मानित किया गया।
- बाबा बेरोजगार
बहुत धन्यवाद आपके ब्लॉग पर इतने महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए। यह वाकई मेरे लिए एक मजेदार पढ़ाई का स्रोत रहा है। मुझे खुशी होती है कि आप अपने पाठकों के साथ यह ज्ञान साझा करते हैं और लोगों को अद्यतित रखने के लिए ऐसे उच्च-मानक लेख प्रदान करते हैं। चिपको आंदोलन उत्तराखंड
ReplyDelete