वो पगली सी एक लड़की है जो मुझको अच्छी लगती है....
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वो पगली सी एक लड़की है
जो मुझको अच्छी लगती है
मुझे देख देख के हंसती है
मेरी आँखों में वो बस्ती है...
हर रोज वो रूप बदलती है
हर रूप में अच्छी लगती है
आँखों में उसकी मस्ती है
वो बात बात पर हंसती है...
बारिश की मस्ती सी रातों में
वो खोई खोई सी रहती है
बातों में उसकी बेचैनी है
बेचैन वो मुझ को करती है...
पगली है या दीवानी है
पर मुझको वो अच्छी लगती है
वो चाँद को छु कर आई हो
ऐसी रोशन लगती है...
वो पागल सी एक लड़की है
जो मुझ को अच्छी लगती है...
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Wo pagli si ek ladki hai
Jo mujhko achi lagti hai
Mujhe dekh dekh k hansti hai
Meri ankhon me wo
basti hai...
Har roj wo roop badalti hai
Har roop me achi lagti hai
Aankho me uske masti hai
Wo baat baat pe hansti hai...
Barish ki masti si
raaton me
Wo khoi khoi si rahti hai
Baton me uske bechaini hai
Bechain wo mujhko karti hai...
Pagli hai ya diwani hai
Par mujh ko achi lagti hai
Wo chand ko chu kar aai ho
Aisi rosan lagti hai...
Wo pagli si ek ladki hai
Jo mujh ko achi lagti hai
-बाबा बेरोजगार
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