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Wednesday 25 February 2015

नजरिया : भ्रस्टाचार या जुगाड़

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सोचा आज कुछ रोज मर्रा के बारे में लिखू... अक्सर हम भ्रस्टाचार के बारे में बात करते हैं की इसे पूरी तरह से समाप्त होना चाहिए... कोई भी गलती करता है और थोड़े पैसे दे के छुट जाता है... जो की गलत है.. ऐसा नहीं होना चाहिए...
पर क्या आप लोगो ने इस का दूसरा रूप देखने की कोशिश की है...


आइये जरा एक बार फिर सोचते हैं... मान लीजिये आप कही जा रहे हैं l अपनी बाइक में बहुत इमरजेंसी में जा रहे हैं और गलती से जल्दबाजी में अपना हेलमेट लाना भी भूल गये तो अगर भ्रटाचार ना हो तो आप का सीधे चालन कटेगा 500 rs का... पर अगर हम थोडा रो धो कर जुगाड़ लगा कर 50 – 100 में बात बना ले तो इस में हम गरीबो का ही भला है...

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चलिए ये तो हो गई छोटी मोटी बात जिसे आप लोग सीधे सीधे गलत ठहरा देंगे पर अब दूसरा उदहारण सुनिए....
     मान लीजिये आप किसी झगडे में गलती से फंस गये और पुलिस आ गई और सब के साथ आप को भी ले गई... अब ये तो आप भी जानते हैं कि अगर एक बार हमारे नाम के साथ ये जुड़ जाते की ये जेल जा चुका है सिर्फ 1 रात या 1 महिना या फिर 1 साल सब एक बराबर है... तो फिर ना हमे ये समाज इज्जत के साथ जीने देगा और ना हम किसी सरकारी नौकरी या फिर किसी अच्छी जॉब के लिए भी तरश जायेंगे....
पर अगर ये भ्रस्ताचार जिसे हम जुगाड़ भी बोल सकते हैं इस से हमे कम से एक मौका तो मिल जाता है अपनी जिन्दगी सुधारे का... जरा सोच के जरूर बताइयेगा की क्या मैं सही हूँ या गलत...
आप के रिप्लाई के इंतेजार में बाबा बेरोजगार....


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