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Sunday 24 April 2016

रिश्ते... संभालना – बिगाड़ना अपने हाथ में...

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       रिश्ते भी बड़ी अजीब सा शब्द है... जो है तो बहुत छोटा पर मायने बहुत रखता है... चाहे कोई सा भी रिश्ता हो, उसकी अलग ही अहमियत है...

 source - google


       कल अपने ऑफिस के नए दोस्त से यूँ ही बातों ही बातों में रिश्तों पर बात चल ही गई... वो कहने लगा कि बहुत बार देखा है कि शादी के बाद बहुत कम रिश्ते ही टिक पाते हैं, खुश रह पाते हैं...

       बताने लगा कि उसके साथ की एक लड़की की शादी जिस से हुई उसने उस से झूठ बोला था कि वो क्या करता है, कैसा है... पर शादी के बाद उसकी असलियत पता चली... अब वो बेचारी परेशान है...

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       (पता नहीं क्यों आज भी हमारे समाज में घर वाले किसी अनजान को अपनी बेटी का हाथ थमा देते हैं जिस से मुश्किल से 3 – 4 बार मुलाकात होती है... जिसमे वो अपने को अच्छा ही दिखायेगा, चाहे वो कैसा भी हो...)







       फिर मैंने उसे कहा कि शादी के बाद पति पत्नी का रिश्ता भी बिलकुल रूम पार्टनर्स की तरह होता है... चाहे वो कितने भी अच्छे दोस्त क्यों न हो पर जब साथ में एक ही रूम शेयर करना पड़ता है तो पता चलता है कि उसके जीने का, रहने सहने का ढंग बिलकुल अलग है... और फिर शुरू होता है हल्ला गुल्ला... पर अगर दोनों एक दुसरे को समझे और उस हिसाब से एडजस्ट कर ले तो फिर लाइफ मस्त चलती है...

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       पति पत्नी का भी यही सीन है बाबा, चाहे शादी मर्जी से हुई हो या नहीं, पर अगर दिल से उसे निभाया जाये... एक दुसरे को समझा जाये तो फिर वो रिश्ता दोस्ती से भी अच्छा हो जाता है...







       हर प्रॉब्लम हर ख़ुशी में साथ होते है... और नो कीच-कीच... हाहाहा... तो फिर अब यहाँ क्या कर रहे हो, अपने को बदलो... कही कोई प्यारी कन्या हमारे लिए व्रत - वगेरा रख रही होगी... उस के सपने कभी मत तोडना हाहाहा... जय हो बाबा जी...


-    बाबा बेरोजगार




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