स्कूल के टाइम की बात ही कुछ और थी... तब की मस्ती और शरारतें शायद ही कोई भुला होगा... तो आज उन्ही यादों को ताजा करते हैं...
स्कूल में होम वर्क से बड़ी दुश्मनी थी यार... स्कूल से घर आ के जहा खेलने का मन होता था वही [पहले होमवर्क करना पडता था फिर घरवाले खेलने भेजते थे... कभी कभी टीचर अगर होमवर्क देना भूल जाये तो कुछ इंटेलीजेंट बच्चे उन्हें याद दिला देते थे फिर वो बाकि क्लास से गाली भी खाते थे...
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स्कूल में सबसे ज्यादा डर लगता था तो बस एग्जाम से... पेपर को देख के रोना ही आता था बस ऊपर से अगर अपना दोस्त किसी से नक़ल मार के लिख रहा हो और हम खुद चुपचाप बैठे हो तो और ज्यादा रोना आता था...
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पेपर में ये टेंशन नहीं रहती थी कि कोई सवाल सिलेबस से बाहर का पूछ ले पर ये डर रहता था कि कही सबसे आगे अपनी सीट न हो...
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तब सबसे खतरनाक काम एक ही होता था और वो था पढाई...
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तब जो अपने पास टिचुक टिचुक वाली पेन होती थी वो सबसे मस्त होती थी... जब कुछ करने को न हो तो उसे ही खोल के दुबारा सेट करते थे... जैसे कि कोई गन सेट कर रहे हों... हाहाहा
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आज भी उन छोटी छोटी चीजों में उतनी ख़ुशी मिल जाती है जितना खूब खर्चा कर के भी नहीं मिलती... जय हो बाबा...
- बाबा बेरोजगार
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