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Sunday 7 June 2015

सपनों की दुनिया बेहतर है या असल दुनिया...

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अभी आराम से चारपाई में बैठ के गाने सुन रहा था... और जब भी मैं ऐसे शांत हो के बैठा रहता हूँ तो पता नहीं अपनी अलग सपनो या फिर कहे कि अपने खयालों की दुनिया में खो जाता हूँ...
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जो जो मैं इस असल दुनिया मैं नहीं कर सकता वो सब इस अलग मेरी अपनी दुनिया में करता हूँ.... चाहे डांस के एक से एक स्टेप करू या फिर किसी अंग्रेज से बे धड़क फटाफट इंग्लिश में बात.... हाहाहा  
      पता नहीं ये साला कोई बीमारी है या फिर एक बहुत ही अलग और अच्छी बात... पर मैं इस में खुश रहता हूँ... लगता है काश असल दुनिया भी ऐसे ही होती और हमे सब कुछ अच्छा मिल जाता जो हम चाहते हैं तो क्या बात होती...

      सब खुश रहते अपने अपने कामो से.... कोई किसी की चुगली नहीं करता, किसी से नहीं जलता... किसी के बारे में बुरा नहीं सोचता... किसी से झगडा करने की नोबत न होती... अपने आप में मस्त.... उफ्फ्फ्फ़ मज्जा ही आ जाता न...

      पर असल जिन्दगी के भी कुछ अपने ही मज्जे है बाबा.... सब कुछ ऐसे ही आसानी से मिल जाये तो फिर उस की अहमियत ही क्या रह जाएगी... मजा तो तब ही आता है जब अपनी कोई प्यारी चीज़ मिले पर थोड़ी मुश्किल से ताकि.... उस से मिलने की मस्त कहानी हम हमेशा याद रखे की वो हमे कितनी मुश्किल से मिली थी....


-    बाबा बेरोजगार

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